आपका इक नशा सा हो गया हमें
रात को आपकी बातें सोने नही देती
सुबह को आपके ख़्वाब जगने नही देते
Aashi
आपका इक नशा सा हो गया हमें
रात को आपकी बातें सोने नही देती
सुबह को आपके ख़्वाब जगने नही देते
Aashi
रूठना न कभी मुझसे
मुझे मनाना नही आता
साथ बैठकर अपना हाल
बताना भी नही आता
दोस्ती कर निभानी तो खूब आती है
पर हक जताना नहीं आता
Aashi
कुछ ऐसी है इन आँखो की बेकरारी
कि यह देखती सबको है
मगर ढूंढती बस आपको है
Aashi
कोई ग़ज़ल सुना कर क्या करना
यूं बात को बढ़ा कर क्या करना
आप मेरे थे, मेरे हो, मेरे ही रहोगे
दुनिया को बता कर क्या करना
Aashi
वो इंतज़ार करते रहे
हमारे कुछ कहने का
अगर एक दफा अपनी नज़रों को
हमारी नज़रों से मिला लेते
तो आज मंज़र ही क्या होता
उस इंतज़ार का !!!
Aashi
समाए है राज़ कहीं, इन आंखों में…
बयां ना हो जाए वो कहीं, मिलाई जो नज़र आपसे…
इसलिए पलको को इनका पहरेदार बना दिया…
और आपके लिए वो हमारी हया बन गई!!!
Aashi
अब मेरी क्या गलती है
कसूर तो इस नज़र का है
इसने आपको खुद में बसाया
और दिल को भी बोल दिया
आपको ही चाहने के लिए
Aashi